पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३८५

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भरतपुर का माहासरा

भरतपुर का मोहासरा Ge "राजा को उन हितकर शर्तों को नामन्जूर करने से और राजा और उसके मन्त्रियों के बयानों के माम तर्ज़ से यह स्पष्ट है कि हमने जो प्रान्त राजा से ले लिए हैं, उसे वह अभी तक अपने साथ अन्याय और ब्रिटिश सरकार की ओर से विश्वासघात समझता है।" यानी बरार का राजा अभी तक इस अन्याय को अन्याय कह रहा था और इस अन्याय के सामने उसने गर्दन न झुकाई थी। इसके अलावा नागपुर के अंगरेज़ रेज़िडेण्ट ऐलफिन्सटन ने इस समय राजा राघोजी के साथ अत्यन्त अनादर का व्यवहार शुरू कर दिया। निस्सन्देह उस समय के भारतीय नरेशों के दरबारों में रेज़िडेण्टों का अच्छा या बुरा व्यवहार कम्पनी की भारतीय नीति का एक निश्चित अङ्ग होता था। अंगरेजों को अब इस बात का डर था कि इस समस्त व्यवहार के बाद कहीं बरार का राजा अपनी रही सही ताकत से जसवन्त. राव होलकर का साथ न दे जाय और अपने पैतृक सूबे अंगरेज़ों के हाथों से छुड़ाने की कोशिश न कर बैठे। मथुरा से बैठे हुए जसवन्त- राव ने राजा राघोजी भोसले को अपनी ओर करने का प्रयल भो किया था। इसलिए मार्किस वेल्सली ने बरार के राज को हो हिन्दोस्तान के मानचित्र से मिटा देने का सङ्कल्प कर लिया। --- - - - -- • "It manifestly appeared not merely by the Raja's rejection of those Beneficial articles, but by the general tenor of his declarations and those of his ministers, that the Raja still considered the ahenation of the provinces m question to be an act of injustice and a violation of faith on the part of the British Government"