सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७९६
भारत में अंगरेज़ी राज

७६६ भारत में अंगरेजी राज होलकर दोनों सब्बलगढ़ से कोटा पहुँचे और कोटा से अजमेर गए । जनरल लेक ने २५ अप्रैल सन् १८०५ को माक्विस वेल्सली को लिखा कि-"मेरे लिए सींधिया का पीछा कर सकना असम्भव होगा।" अपनी इस असमर्थता के कारणों में उसने "गरमी की तेज़ी" और "पानी की कमी के अतिरिक्त एक कारण यह भी लिखा- __ “कोई ऐसा अधम कार्य नहीं जिसे ये लोग न कर सकते हों; उस अमानुषिक राक्षस होलकर को सब से अधिक प्रानन्द समस्त यूरोपियनों का वध करने में आता है और जहाँ तक सुनने में आया है सेरजीराव घोटका के भाव भी हमारी ओर ठीक इसी प्रकार के हैं।" . सेरजोराव धोटका सींधिया का एक विश्वस्त सेनापति और अनुयायी था । प्रतिष्ठित भारतीय नरेशों के लिए अपने सरकारी और प्राइवेट पत्रों में नीच से नीच अपशब्दों का उपयोग करना और भारतीय नरेशों के चरित्र पर झूठे कलङ्क लगाना उस समय के कम्पनी के बड़े से बड़े अंगरेज़ मुलाज़िमों के लिए एक सामान्य बात थो। जनरल लेक के आयरलैण्ड और भारत के असंख्य पाप कृत्यों से ज़ाहिर है कि "अधम कार्यों" के करने में प्रायः कोई भी मनुष्य जनरल लेक का मुकाबला न कर सकता था। वास्तव में जसवन्तराव होलकर और दौलतराव सींधिया दोनों घोर और ऊँचे दर्जे के सेनानी साबित हो चुके थे और जनरल लेक जिसका एक • “There is no vile act these pople are not equal to, that inhuman monster Holkar's chief dehght is in butchenng all Europeans, and by all accounts Serjie Rao Ghautka's disposition towards us is precisely the same."