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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३९३

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दूसरे मराठा युद्ध का अन्त

७६७ दूसरे मराठा युद्ध का अन्त मात्र शस्ल उसके "गुप्त उपाय" थे; उन दोनों का मुकाबला करने से काँपता था। माक्विस वेल्सली भी काफी परेशान था। उसने जनरल लेक के पत्र के उत्तर में १७ मई सन् १८०५ को लिखा परेशानी कि जहाँ तक हो सके "दौलतराव सींधिया के " साथ लड़ाई छेड़ने से बचा जाय” और “यदि सम्भव हो तो बिना और अधिक लड़े होलकर के साथ भी सब मामलों का फैसला कर लिया जाय।" किन्तु मार्किस वेल्सलो इस बात को भी अनुभव कर रहा था कि इतने दिनों प्रयत्न करने पर भी भरतपुर जैसे दोबारा युद्ध की छोटे से राजा से हार जाना, होलकर को वश में नान कर सकना और सींधिया के साथ भी इस प्रकार समझौता कर लेना, इस सब में अंगरेजों की काफ़ी जिल्लत हुई है। वेल्सली केवल मौसम की खराबी और धन की कमी से विवश था। सुलह की बातचीत से वह केवल सोंधिया और होलकर दोनों को धोखे में रखना चाहता था। उसकी हार्दिक इच्छा यही थी कि जितनी जल्दी मौका मिले सींधिया और होलकर दोनों को नष्ट कर दिया जाय । एक ओर उसने जनरल लेक को लिखा कि मराठा नरेशों के साथ सुलह की बातचीत की जाय और दूसरी श्रोर उसने अवध के नवाब वजीर से नया कर्ज लेने का प्रबन्ध किया । जिस पत्र का ऊपर जिक्र आया है, उसी पत्र में श्रागे चल कर बेल्सली ने जनरल लेक को लिखा- ...