दूसरे मराठा युद्ध का अन्त ८०४ किन्तु इस समय देश की परिस्थिति और कम्पनी की आर्थिक कठिनाई से बारलो भी मजबूर था। होलकर और सोंधिया दोनों इस समय अजमेर में थे। जनरल लेक में उनके मुकाबले का साहस न था। इस लिए बारलो को सबसे पहली चिन्ता यह हुई कि जिस तरह भी हो सके, सींधिया और होलकर को एक दूसरे से पृथक कर दिया जाय। शुरू ही से सींधिया को जसवन्तराव होलकर पर पूरा विश्वास न था और जसवन्तराव का साथ देने के लिए उसमें जैसा चाहिए वैसा उत्साह भी न था। इस लिए लॉर्ड कॉर्नवालिस को सुलह की तजवीज़ो का सींधिया पर अच्छा असर पड़ा। अपनी ओर से वह युद्ध बन्द करने के लिए राजी हो गया। मुन्शी कमलनयन का जिक्र पिछले अभ्याय में किया जा चुका है जिस समय जसवन्तराव भरतपुर सींधिया के साथ संचल कर सींधिया से श्राकर मिला, मुन्शी नयो सन्धि ___ कमलनयन एकाएक अपने मालिक को छोड़ कर अंगरेजों के पास दिल्ली चला आया। मुन्शी कमलनयन की मार्फत ही जनरल लेक ने सींधिया के साथ फिर बातचीत शुरू की। सींधिया को होलकर से तोड़ने का कार्य फिर कमलनयन को सौंपा गया और अन्त में कमलनयन की मार्फत ही २३ नवम्बर सन् १८०५ को महाराजा दौलतराव सोंधिया और अंगरेज़ों के बीच फिर से सन्धि हो गई। इस नई सन्धि में सन् १८०३ वाली सन्धि की कई शर्ते बदल
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