भारत में अंगरेजी राज अधिक महत्व की थी ही नहीं, पाइरिश सेनापति जॉर्ज टॉमस मासि वेल्सली को लिख चुका था कि पञ्जाव को कितनी सरलता से विजय करके अंगरेजी राज में मिलाया जा सकता है। सारांश यह कि फिर दो चार वर्ष के अन्दर ही हिन्दोस्तान का सारा नकशा अंगरेज़ी रङ्ग में रङ्ग लिया गया होता। अर्थात् यदि जसवन्तराव होलकर और भरतपुर का राजा दोनों बीरता के साथ अंगरेज़ों का मुकाबला न करते, तो इस समय के भारत को लगभग ७०० छोटी बड़ी देशी रियासतों में से शायद एक भी बाकी न बची होती। इसके अतिरिक्त भारतीय प्रजा के साथ भी अंगरेजों का व्यवहार फिर दूसरे हो ढङ्ग का होता । सम्भव है कि जिस प्रकार अंगरेजों और अन्य यूरोपनिवासियों के दूसरे उपनिवेशों में देशी कौमों को मिटा देने के सफल प्रयत्ल किए गए, उसी प्रकार भारत में भी किए जाते। किन्तु ये सब केवल अनुमान हैं। इसमें सन्देह नहीं कि वह समय राष्ट्र की किस्मत के एक ख़ास पलटा खाने का समय था, और जसवन्तराव होलकर और भरतपुर के राजा के साहस ने उस समय भारतवासियों के दिलों से अंगरेजो के जादू का असर बहुत दर्जे तक कम कर दिया और अंगरेजों के दिलों में भी भारतवासियों की एक खास इज़्ज़त पैदा कर दी। निस्सन्देह जसवन्तराव होलकर और भरतपुर के राजा के नाम भारतीय वीरों की सर्वोच्च श्रेणी सदा के लिए अङ्कित रहेंगे। सर जॉर्ज बारलो के शासनकाल की केवल दो और घटनाएँ
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