दूसरे मराठा युद्ध का अन्त ८१६ मद्रास प्रान्त में मिला। इसलिए मद्रास प्रान्त में ही अभी तक ईसाइयों की संख्या सबसे अधिक है। उस समय लॉर्ड विलियम बेण्टिङ्क मद्रास का गवरनर और सर जॉन क्रेडक वहाँ का कमाण्डर-इन-चीफ़ था । ये दोनों अंगरेज ईसाई मत के प्रचार में बड़े उत्साही थे। लॉर्ड विलियम बेण्टिक के इस सम्बन्ध के कारनामों में से एक यह भी था कि उसने ऐबे दूबॉय नामक एक फ्रान्सीसी ईसाई पादरी को ८,००० रुपए नकद देकर भारतवासियों के धार्मिक और सामाजिक रस्मो रिवाज पर एक पुस्तक लिखवाई, जिसमें भारत- वासियों को जी भर के गालियाँ दी गई हैं, जिसमें अनेक झूठ भरे हुए हैं और जिसका सरकार के खर्च पर इंगलिस्तान में खूब प्रचार कराया गया। इस पुस्तक में यह साबित करने की कोशिश की गई है कि भारतवासी बिलकुल जंगली हैं और उनके उद्धार के लिए अंगरेज़ों का शासन आवश्यक है । इस फ्रान्सीसी पादरी के भारत से फ्रान्स लौटने पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने उसे एक विशेष श्राजीवन पेनशन प्रदान की।* जिस “कपटी स्वेच्छाशासन" ने सुप्रसिद्ध अंगरेज़ विद्वान हरबर्ट स्पेन्सर के शब्दों में “देश की पराधीनता को कायम रखने और उसे विस्तार देने के लिए देशी सिपाहियों", का ही उपयोग __• Encyclopoedra Britannica vol, vul, p 624, 11th edition. + "Cunning despotism" which used " native soldiers to maintain and extend native subjection,"-Herbert Spencer
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