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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४१४

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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज ___एक दूसरे विद्वान् अंगरेज़ लॉर्ड मेटकॉफ़ का कथन है- "गवरनर जनरल सर जॉर्ज बारलो ने अपने कुछ पत्रों में साफ़ साफ़ लिखा है कि देशी राजाओं के आपसी झगड़े बारलो को अपने बल के बढ़ाने का एक विशेष उपाय नज़र आते हैं ; और यदि मैं ग़लती नहीं करता तो गवरनर जनरल की कुछ तजवीज़ों का स्पष्ट परिणाम यह है और उनका लक्ष्य भी यही है कि उनके द्वारा इन रियासतों में आपसी झगड़े पैदा किए जायें । इन दो उद्धरणों के बाद इस मामले को अधिक विस्तार देना व्यर्थ है। वेलोर के गदर का एक मात्र कारण यह था कि उस समय के अंगरेज़ शासकों में भारतवासियों को ईसाई ईसाई मत प्रचार वार बनाने का बेहद उत्साह था । मार्किस वेल्सलो को उत्तेजना ' ने भारत के अन्दर ईसाई मत के प्रचार में जो कुछ सहायता दी उसका वर्णन ऊपर किसी अध्याय में किया जा चुका है। शुरू से ही ईसाई मत को भारत में सबसे अच्छा क्षेत्र of its neighbours, as one of the chief sources of its security, and which, if it does not directly excite such wars, shapes its political relations with inferior states in a manner calculated to create and continue them"-Political History of India by Sur John Alalcolm + "The Governor-General in some of his despatches, distinctly says that he contemplates in the discord of the native powers, an additional source of strength, and, if I am not mistaken, some of his plans go directly and are designed to foment discord among those states ---The policy of Sir George Barlow, from Kaye's Selections from the Papers of Lord Metcalf p. 7.