पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४२०

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८२४
भारत में अंगरेज़ी राज

८२४ भारत में अंगरेज़ी राज परिणाम यह था कि लॉर्ड मिण्टो को इस बात का डर था कि अंगरेज़ी इलाके की असन्तुष्ट प्रजा अपने नए विदेशी और विधर्मी शासकों के विरुद्ध बलवा न कर बैठे। कम्पनी के लिए सब से पहला काम यह था कि अपनी भारतीय प्रजा को इस प्रकार दबा कर रक्खे जिससे प्रजा - उसके विरुद्ध विद्रोह न कर सके। प्रजा को में डकैतियाँ लगातार आपत्तियों में फंसाये रखने में ही उस समय के विदेशी शासकों को अपनी कुशलता दिखाई दी, और प्रजा की खुशहाली और निश्चिन्तता में उन्हें अपने लिए खतरा नज़र अाया। लॉर्ड कॉर्नवालिस के जिन शासन सुधारों का ऊपर वर्णन हो चुका है उनका मुख्य उद्देश भी भारतीय प्रजा में सदा के लिए आपसी झगड़े कायम रखना ही था और यही उन 'सुधारों' का परिणाम हुआ। लॉर्ड मिण्टो के समय में करीब करीब समस्त ब्रिटिश भारत के अन्दर डकैतियों का बाज़ार खूब गरम था, और उनके साथ साथ भयङ्कर हत्याएँ, घरों में श्राग लगा देना, और तरह तरह के अत्याचार जगह जगह हो रहे थे ।* लार्ड डफरिन ने ३० नवम्बर सन् १८८८ को कलकत्ते में वक्तृता देते हुए कहा था- "xxx लार्ड मिण्टो के समय में कलकत्ते से इधर उधर बीस बीस the scenes of horror, the murders, the burnings, the excessive "-the Judge of circuit In Rajeshaye, 1808 cruelties