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भारत में अंगरेज़ी राज

३० भारत में अंगरेज़ी राज की आवश्यकताओं की ओर पूरा ध्यान देते थे और प्रजा के जान माल को रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझते थे। प्रायः समस्त अंगरेज़ लेखक स्वीकार करते हैं कि उस समय भी जब कि ब्रिटिश भारत के अन्दर चारों ओर डकैतियों का बाज़ार गरम था और भारतीय प्रजा के जान माल की कोई रक्षा न की जाती थी, पास के देशी राज्यों मे,जहाँ पर कि प्रजा के पास धन वैभव कहीं अधिक था, उनकी जान और माल दोनों की पूरी हिफाजत की जाती थी। निस्सन्देह अगजकता और कुशासन अंगरेजों के आने से पहले भारत में मौजूद न थे । इतिहास साक्षी है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ ही साथ इस देश में शान्ति और समृद्धि दोनों का खात्मा हुश्रा, और अराजकता और कुशासन ने उनका स्थान ग्रहण किया। यहाँ तक कि देशी राज्यों के अन्दर भी जितने उपद्रव और विद्रोह होने शुरू हुए वे कम्पनी के बङ्गाल में कदम जमाने के बाद से शुरू हुए और अधिकतर कम्पनी के शासको या उनके गुप्तचरों के ही पैदा किए हुए थे । कम्पनी के प्रतिनिधियों ने ही अवध के नवाब वज़ीर से निरपराध वीर रुहेलों का संहार करवाया और श्रासफुद्दौला के काँपते हुए हाथों से उसकी वृद्वा माँ के महलों को लूटने में मदद ली। किन्तु यह सब कहानी किसी दूसरे स्थान की है। लॉर्ड मिण्टो ने अपने पत्र में यह भी स्वीकार किया है कि पचास वर्ष से ऊपर के अंगरेजो शासन ने भारतवासियों और