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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४३४

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भारत में अंगरेज़ी राज

८.३० भारत में अंगरेज़ी राज पिण्डारी सरदारों का व्यवहार अपने अनुयाइयों के साथ इतना सुन्दर होता था कि विशेष कर १८ वीं | सदी के अन्त और १६ वीं सदी के शुरू में उनके सैनिक संगठन " अनुयाइयों की संख्या ज़ोरों के साथ बढ़ती चली गई । इतिहास लेखक विलसन लिखता है कि इनमें से अधिकांश पिण्डारी सरदार मालवा में बस गए । सींधिया और होलकर दरबारों की ओर से अधिकतर नर्बदा के किनारे किनारे इन्हें अपने गुज़ारे के लिए मुफ्त जमीने दे दी गई । शान्ति के समय ये लोग खेती बाड़ी करके और अपने टटुओं और बैलों पर माल लादकर उसे बेच कर अपना गुजारा करते थे और इनसे यह शर्त थी कि युद्ध छिड़ने पर अपने घोड़ों सहित मराठा दरबारों की मदद के लिए पहुँच जाया करें। होलकर राज में रहने वाले पिण्डारी 'होलकर शाही' और सीधिया राज में रहने वाले 'सींधिया शाही' कहलाते थे । जसवन्तराव होलकर का अनुयायी प्रसिद्ध अमीर खाँ भी एक पिण्डारी सरदार था। ___जनरल वेल्सली ने २६ मार्च सन् १८०३ को जनरल स्टुअर्ट को लिखा था कि मैंने तीन हज़ार पिण्डारी सवार पेशवा की नौकरी के लिए तैयार किए हैं और - "यदि पेशवा उन्हे नौकर रखना पसन्द न करे तो xxx उन्हें या तो बरनास्त कर दिया जाय और या बिना तनलाह दिए शत्रु को लुटवाने में the Courts of Mussalman Princes "-Origin of the Pandaries etc , by an Officer in the Service of the Honourable East India Company, 1818