पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४३५

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प्रथम लॉर्ड मिण्टो

प्रथम लॉर्ड मिण्टो ३६ उनका उपयोग किया जाय; और हर सूरत में यदि पेशवा उनका नर्च देने से इनकार कर दे तो भी x x x यदि हम उन्हें होलकर की ओर जाने से रोके रखें तो इससे हमारी सेना को निस्सन्देह इतना लाभ होगा कि उसके मुकाबले में कम्पनी के ऊपर जो कुछ खर्च करना पड़ेगा वह बहुत ही थोड़ा होगा।"* ज़ाहिर है कि उस समय भी अंगरेज़ पिण्डारियों को धन और उत्तेजना दे देकर उनसं देशी राजाओं के इलाकों पिण्डारियों से देशी दशा में लूट मार करवाया करते थे। इसीलिए ग्रॉण्ट राजाओं को __ डफ़ लिखता है कि यदि कोई अंगरेज़ निहत्था भी इन पिण्डारी डाकुओं के बीच से रात को निकल जाता था तो वे उसे कुछ न कहते थे । वास्तव में पिण्डारियों से अपने मराठा स्वामियों के साथ विश्वासघात कराना और उनसे भारतीय नरेशों के इलाकों को लुटवाना उस समय की कम्पनी की भारतीय नीति का एक विशेष अंग था। किन्तु यह हालत बहुत दिनों न रह सकी। सन् १८१२ ई० के लुटवाना • "If he (the Peshwa ) should not approve of retaining them, they may either be discharged, or may be employed in the plunder of the enemy without pay, . and at all events, supposing that His Highness should refuse to pay their expences the charge to the Company will be traffing in comparison with the benefit which this detachment must derive from keeping this body of Pundaries out of Holkar's services, . . "- Duke of Wellington's despatches, vol 1, pp 120, 121