प्रथम लॉर्ड मिण्टो भी था कि अंगरेज़ों ने पिण्डारी सरदारों के बढ़ते हुए बल को रोकने के लिए उन्हें आपस में एक दूसरे के विरुद्ध भड़काना और एक दूसरे से लड़ाना शुरू कर दिया था, और उनमें से कई की वे रको बन्द कर दी जो पहले उन्हें कम्पनी से मिला करती थीं। पिण्डारी सरदारों की ओर कम्पनी की चालें कितनी दुरङ्गी थीं, इसकी एक सुन्दर मिसाल सन् १८०६ का अमीर खाँ का बरार पर हमला है। इस मामले में कम्पनी के दो उद्देश थे । एक, यद्यपि अमीर खाँ .. से कम्पनी के अनेक बड़े बड़े काम निकल चुके अमीर ख़ों का जिनके लिए अंगरेज अमीर खाँ को अनेक बार धन भी दे चुके थे, फिर भी अमीर खां का बल इस समय इतना बढ़ गया था कि अंगरेजों को स्वयं अपने लिए उससे भय हो गया । अमीर खाँ एक वीर और पराक्रमी सेनापति था और अंगरेज़ अब जिस प्रकार हो, उसके बल को कम करने की कोशिशों में लग गए । दूसरे, बहुत दिनों से वे बरार के राजा को सबसीडियरी सन्धि के जाल में फंसाने के प्रयत्न कर रहे थे। २४ मार्च सन् १८०५ को माक्विस वेल्सली ने कम्पनी के डाइरेक्टरों के नाम एक लम्बा पत्र लिखा था, जिसमें लिखा है कि-उस समय जब कि होलकर और अंगरेज़ों में युद्ध जारी था, नागपुर के रेज़िडेण्ट ने बरार के राजा और उसके मन्त्रियों को खूब बरार पर हमला
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