पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४३८

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८४२
भारत में अंगरेज़ी राज

८४२ भारत में अंगरेजी राज समझाया कि श्रापको अंगरेजों के साथ सबसीडीयरी सन्धि कर लेनो चाहिए । पत्र में लिखा है कि रेज़िडेण्ट ने उस अवसर पर बरार के राजा से साफ़ साफ़ कहा कि यदि आपने अंगरेजों के साथ सबसीडीयरी सन्धि न कर ली, तो डर है कि जसवन्तराव होलकर के साथ अंगरेजों का युद्ध समाप्त होने के बाद जसवन्तराव की सेना आपके इलाके पर हमला कर दे ; और यदि अंगरेज़ों और आपके बोच पहले से सबसीडीयरी सन्धि हो जायगी तो अंगरेज़ सबसीडीयरी सेना द्वारा आपकी सहायता कर सकेंगे। किन्तु रेजिडेण्ट के हर तरह समझाने पर भी राजा ने सबसीडीयरी सन्धि को स्वीकार करने से इनकार किया। इस तरह की सन्धियों के विषय में उन दिनों श्राम नियम यह था कि पहले अंगरेज रेजिडेण्ट और कम्पनी के दूत देशी नरेशों और उनके मन्त्रियों को जबानी इस तरह की सन्धियों के फायदे सुझाते थे और फिर देशी नरेश की ओर से कम्पनी के नाम पत्र द्वारा सन्धि के लिए इच्छा प्रकट कराई जाती थी। और दिखाया यह जाता था कि ये सन्धियाँ देशी नरेशों की प्रार्थना पर की जाती हैं। उस समय अंगरेज बरार के राजा पर इससे अधिक जोर न दे सकते थे। इसलिए माविस वेल्सली ने अपने पत्र के अन्त में लिखा है- "यह अधिक उचित मालूम हुआ कि राजा के दिल पर आइन्दा की घटनाओं का प्रभाव पड़ने तक के लिए राजा को छोड़ दिया जाय और इस बात पर विश्वास किया जाय कि उन घटनाओं का राजा पर इस तरह का