पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४५

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टीपू सुल्तान

टोपू सुलतान निस्सन्देह टीपू का जीवन और उसकी मृत्यु दोनों इस कथन के अनुरूप थी। ___ लालबाग श्रीरङ्गपट्टन में टीपू, हैदर और हैदर की मां फातिमा, तीनों की कबरें एक ही जगह एक ही छत के नीचे बनी हुई हैं। जो अनेक सुन्दर कविताएँ वहाँ टीपू की मृत्यु के सम्बन्ध में लिखी हुई हैं उनमें टीपू को 'शाहे शहदा' यानी शहीदों का सम्राट और 'नूरे इसलामो दोन' यानी इसलाम और दीन का नूर कहा गया है। टीपू की श्रायु उस समय ५० वर्ष की थी। १७ साल वह अपने .. पिता के तख्त पर बैठ चुका था। उसका सबसे टीपू के बड़े बेटे के 'बड़ा बेटा फ़तह हैदर सुलतान इस समय किले साथ फूठा वादा बाहर कारीघाट पहाडी के निकट शत्रु से लड रहा था। पिता की मृत्यु का समाचार सुनते ही वह किले की ओर लपका । सलाह के लिए उसने तुरन्त अपने वजीरों और अमीरों को जमा किया। इनमें एक ओर मलिक जहान खां और उसके साथी लड़ाई जारी रखने के पक्ष में थे और दूसरी और पूनिया और उसके साथी फौरन सुलह कर लेने पर जोर दे रहे थे। इतने में जनरल हैरिस ने सुलह की बातचीत करने के बहाने अपने कुछ अफ़सरों सहित पाकर फ़तह हैदर सुलतान से भेंट की और अत्यन्त आदर और प्रेम के साथ सबके सामने उससे वादा किया यदि श्राप लड़ाई बंद कर दे तो अंगरेज़ सरकार आपको फिर से आपके पिता के तख्त पर बैठा देगी। इस साफ़ वादे पर और पूनिया जैसों के ज़ोर देने पर फतह हैदर सुलतान ने शला रख दिए । जनरल