पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४६

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४७२
भारत में अंगरेज़ी राज

अत्याचार ४७२ भारत में अंगरेजी राज हैरिस ने वहां से लौटते ही अपने इस वादे को साफ़ तोड़ डाला। निस्सन्देह यह वादा केवल एक चाल थी। श्रीरापट्टन के किले पर अंगरेजी सेना का पूरी तरह कब्ज़ा हो गया। श्रीरापट्टन के किले के बाद अंगरेज़ी सेना के लिए नगर में प्रवेश करना बाक़ी था। मार्किस वेल्सली के नाम श्रीरापट्टन में कपलानप्रकाशित किया गया कि अंगरेज़ी अंगरेजी सेना के सेना नगर निवासियों के जान और माल दोनों की रक्षा करेगी और किसी पर किसी तरह का अन्याय न होगा। किन्तु विजयी अंगरेजी सेना के मगर में घुसते ही "श्रीरङ्गपट्टन की गलियों में एक एक दीवार और एक एक दरवाजे से खून बहने लगा।" इतना ही नहीं, श्रीरापट्टन के पतन के बाद कई दिन तक कम्पनी के सिपाहियों और सास कर गोरे सिपाहियों ने जो अकथनीय अत्याचार नगर निवासियों पर जारी रक्खे और जिन्हें स्वयं अंगरेज़ अफसरों ने अपने पत्रों में स्वीकार किया है, उनके सामने किसी भी भारतीय नरेश के काले से काले पाप फीके मालूम होते हैं। मीर हुसेनअली खां लिखता है कि कल्ल, लूट और नगर को लियों के ऊपर बलात्कार इस ज़ोरों से बढ़ा कि बयान करना नामुमकिन है। इसके बाद अंगरेजी सेना शाही महल के अन्दर घुसी। टीपू को अपने बाप के समान शेर पालने का शौक टीपू के महल को था। उसके महल के बाहरी सहन में बेशुमार और खुले फिरते रहते थे। अंगरेज़ों को भीतर