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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४५४

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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज अंगरेज़ों का भारतीय साम्राज्य निकटवर्ती अफ़ग़ानिस्तान के बादशाहों या वहाँ की प्रजा को कभी भी नहीं फला । माकिस वेल्सली के समय से लेकर आज तक अफ़ग़ानिस्तान को गुप्त षड़यन्त्रों, आपसी लड़ाइयों और हत्याओं का क्षेत्र बनाए रखना ही भारत के ईसाई शासकों ने अपनी मलामती के लिए सदा हितकर समझा और अफ़ग़ानिस्तान की प्रजा को इन विदेशियों से सिवाय मुसीबतों और बरबादी के और कुछ न मिल सका। ईरान के अतिरिक्त लॉर्ड मिण्टो ने तीन और स्वाधीन दरबारों में अपने विशेष दूत भेजे । एक सिन्ध, दूसरे पञ्जाब और तीसरे अफ़ग़ानिस्तान । इन तीनों जगहों के दूतो के कृत्यों को संक्षेप में बयान करना आवश्यक है । इनमे मब से पहले हम सिन्ध के दूतों का वर्णन करते हैं। इससे पहले कम्पनी का एक व्यापारी एजेण्ट सिन्ध में रहा करता था। सन् १८०२ में सिन्ध के कारीगरों लॉर्ड मिण्टो और भार के साथ असह्य दुर्व्यवहार के कारण वह सिन्ध भी सिन्ध ' से निकाल दिया गया। उसके बाद सात वर्ष तक सिन्ध के साथ अंगरेजों की तिजारत बन्द रही। अब लॉर्ड मिण्टो ने अपना एक दूत कप्तान सीटन सिन्ध की राज- धानी हैदराबाद भेजा । सीटन ने हैदराबाद के अमीर से कहा कि अफगानिस्तान का बादशाह शाहशुजा आपको गद्दी से उतार कर आपकी जगह एक निर्वासित नरेश अब्दुलनबी को हैदराबाद की गद्दी पर बैठाना चाहता है और अंगरेज़ आपकी मदद के लिए