प्रथम लॉर्ड मिण्टो ८६१ सिंह अपढ़ किन्तु वीर, और योग्य सेनापति था। वह काबुल के प्रभुत्व को अन्त कर अपने लिए एक छोटा सा स्वतन्त्र साम्राज्य कायम कर लेना चाहता था । किन्तु रणजीतसिंह में दूर दर्शिता या नीतिज्ञता की कमी थी। मार्किस वेल्सली को भी उस समय पञ्जाब को अंगरेजी साम्राज्य में मिला लेने की कोशिश करना इतना लाभदायक दिखाई न देता था। वह मराठों और अफ़ग़ा- निस्तान के बीच में पञ्जाब को एक इस तरह की स्वतन्त्र रियासत (बफर स्टेट) बनाए रखना चाहता था, जिसका समय समय पर मराठों या अफ़ग़ानिस्तान दोनों के विरुद्ध उपयोग किया जा सके। इसीलिए मार्किस वेल्सली महाराजा रणजीतसिंह और सतजल के इस पार के सिख राजाओं के साथ बराबर साज़िशें करता रहा। रणजीतसिंह ने इस श्राशा में कि अंगरेज़ मुझे इस उपकार का बदला देंगे, न केवल ऐन सङ्कट के समय मराठों को मदद ही नहीं दी, वरन् जसवन्तराव होलकर का पीछा करने के लिए कम्पनी की सेना को अपने राज से जाने की इजाजत दे दी, और एक प्रकार जसवन्तराव को उसके शत्रुओं के हवाले कर दिया। पिछले अभ्यायो में दिखाया जा चुका है कि किस प्रकार दूसरे मराठा युद्ध के समय पटियाला और दोश्राब की अन्य सिख रियासतों को अंगरेज़ों ने मराठों के विरुद्ध अपनो ओर फोड़ लिया था। रणजीतसिंह में यदि वीरता के साथ साथ थोड़ी सी नीति- शता भी होती तो वह इन सब छोटे बड़े राजाओं को अपनी ओर करके उनको मदद से पञ्जाब में एक स्थायी सिख साम्राज्य कायम
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