पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४५८

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८६२
भारत में अंगरेज़ी राज

८६२ भारत में अंगरेजी राज कर सकता था। किन्तु इसके स्थान पर वह अपने देश और अपने धर्म के इन नरेशों और उनकी प्रजा को थोड़े से स्वार्थ के बदले में विदेशियों के हवाले कर देने के लिए गज़ी हो गया। कम्पनी के डाइरेक्टरों के नाम मार्किस वेल्सली के २६ सितम्बर सन् १८०३ के एक पत्र में लिखा है :- "लाहौर के राजा रणजीतसिह ने, जो सिख राजाओं मे मुख्य है, कमाण्डर-इन-चीफ़ के पास यह तजवीज़ लिख भेजी है कि मैं सतलज नदी के दक्खिन का सिखों का इलाका कम्पनी को दे देने के लिए तैयार हूँ, इस शर्त पर कि अंगरेज़ और मैं दोनों एक दूसरे के शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध में एक दूसरे को सहायता दें।"* किन्तु महाराजा रणजीतसिह की इस 'तजवीज़' की ओर ध्यान देने की अंगरेजों को उस समय आवश्यकता न क थी। रणजीतसिंह से ऊपर ही ऊपर सतलज के व इस पार के राजाश्री के साथ वे धीरे धीरे प्रथक सन्धियाँ करते जा रहे थे । इन मन्धियों के अनुसार ये सब राजा एक एक कर कम्पनी के संरक्षण ( Protection ) में ले लिए जाते थे और भविष्य के लिए इस प्रकार का प्रबन्ध कर लिया जाता था कि धीरे धीरे बिना युद्ध उनकी रियासते कम्पनी के सिख • " Raja Ranjit Singh, the Raja of Lahore and the principal amongst the Sikh chieftains, has transmitted proposals to the Commander-in-Chief tor the transfer of the territory helonging to that nation south of the river Satlaj, on the condition of mutual defence against the respective enemies of that chieftain and of the British Nation."-Governor-General in Council to the Hon'ble Secret Committee, etc , September 29th, 1803