पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४६०

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८६४
भारत में अंगरेज़ी राज

८६४ भारत में अंगरेजी राज के साथ पूर्ववत् मित्रता का सम्बन्ध कायम रखने की इच्छा प्रकट की और लिखा कि-"जमना के इस ओर का प्रदेश, सिवाय उन स्थानों के जिन पर अंगरेजों का कब्जा है, शेष मेरे अधीन है। उसे ऐसा ही रहने दिया जाय।" इस पत्र के उत्तर में लॉर्ड मिण्टो ने मेटकाफ़ को, जो बाद में सर चार्ल्स मेटकाफ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ, अपना विशेष दूत नियुक्त करके रणजीतसिंह के दरबार में भेजा । मेटकाफ़ को भेजने का उद्देश महाराजा रणजीतसिंह के साथ कम्पनी की मित्रता दर्शाना बताया गया, किन्तु जिस समय मेट- काफ़ को रणजीतसिंह के दरबार में रवाना किया गया, उसी समय उसके साथ ही साथ मिण्टो ने कमाण्डर-इन-चीफ़ को कूच की तैयारी करने की आज्ञा दी और लिखा:- "यह मानने के लिए कारण मौजूद हैं कि जिस देश पर रणजीतसिंह ने ज़बरदस्ती अपनी सत्ता जमा रक्खी है, उसका एक ख़ासा भाग बहुत असन्तुष्ट है, और यदि भरपूर कोशिश की जाय और सफलता हो जाय, तो हमारे लिए इससे अधिक लाभ की और कोई बात नहीं हो सकती कि हम अपनी सरहद और सिन्धु नदी के बीच के समस्त देश से अपनी विरोधी और प्रतिस्पर्धी शक्तियों को निकाल कर उनकी जगह अपने मित्र और अपने माश्रित कायम कर दें।" • There is reason to believe that a considerable portion of the country usurped by Ranjit Singh is strongly disaffected, and should any grand effort be made, and be crowned with success, nothing would be more advantageous to our interests than the substitution of friends and dependants for hostile and rival powers throughout the country between our frontier and the Indus"-Lord Minton India, p 154