पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४६१

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प्रथम लॉर्ड मिण्टो

प्रथम साई मिण्टो ६५ अगस्त सन् १८० के अन्त में मेटकाफ़ दिल्ली से चला। ११ सितम्बर को वह कसूर पहुँचा। रणजीतसिंह मेटका और ____ उस समय कसूर में था। मेटकाफ़ के पत्र में लिखा है कि रणजीतसिंह ने बड़े आदर के साथ मेटकाफ़ का स्वागत किया । खूब खातिर तवाज़ो हुई। २२ सितम्बर को मेटकाफ़ और रणजीतसिंह में मामले की बात चीत शुरू हुई । मेटकाफ़ ने रणजीतसिंह को समझाया कि फ्रान्सीसी अफ़ग़ानिस्तान और पञ्जाव पर हमला करने वाले हैं, इसलिए आपको अंगरेज़ों के साथ सन्धि कर लेनी चाहिए । मेटकाफ़ ने गवरनर जनरल को एक पत्र में लिखा- "बातचीत करते हुए आपके श्रादेश के अनुसार मैंने राजा को यह डराने की कोशिश की कि आपके राज पर आपसि भाने की सम्भावना है, साथ ही उसे यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि अंगरेज़ भापकी रचा कर सकते हैं।" किन्तु रणजीतसिह की आँखों में धूल डालना इतना सरल न था। उसने मेटकाफ़ से साफ़ पूछा कि अंगरेज़ तसिंह की सरकार सतलज के दोनों ओर की सब सिख लाफ बातें रियासतों के ऊपर मेरा श्राधिपत्य स्वीकार करती है या नहीं ? मेटका ने उत्तर दिया कि इस विषय में + “In the course of this conversation, I endeavoured, in conformity to the anstructions of the Supreme Government, to alarm the Raja for the safety of his territornes, and at the same time to give him confidence in our protection "-Kaye's Lives of Indsan Oficers, vol 1, p 394 ५५