८६६ भारत में अंगरेजी राज अपनी सरकार के विचार प्रकट करने का मुझे अधिकार नहीं है। रणजीतसिंह इस उत्तर को सुन कर खिन्न हो गया। उसने फ़ौरन् दोआब पर चढ़ाई को और कई राजाओं से खिराज वसूल किया। इस सारे समय में मेटकाफ़ कम्पनी के एजण्ट की हैसियत से बराबर रणजीतसिंह के दरबार में बना रहा। अपने सच्चे इरादे के विषय में अंगरेज़ों ने रणजीतसिंह को उस समय तक धोखे में रक्खा, जिस समय तक कि उनकी तैयारी पूरी नहीं हो गई । २२ दिसम्बर सन् १८० को मेटफाफ़ ने महाराजा रणजीतसिंह को साफ़ साफ़ इत्तला दी कि अंगरेज़ सरकार का यह निश्चय है कि जमना और सतलज के बीच की रियासते कम्पनी के संरक्षण में हैं, सलतज पार के जो इलाके पहले से श्राप के अधीन हैं उन पर आप अपना आधिपत्य कायम रख सकते हैं, किन्तु जिन इलाकों को आपने हाल में अपने अधीन किया है वे सब आपको कम्पनी के लिए छोड़ देने होंगे और कम्पनी के इस निश्चय के अनुसार कार्य कराने के लिए सतलज के बाएँ तट पर कम्पनी की एक सेना नियुक्त की जायगो। महाराजा रणजीतसिंह मेटकाफ़ के इस कथन को सुन कर कोप से भर गया, इतने पर भी इतिहास लेखक अमृतसर में हिन्दू सर जॉन के लिखता है कि उसने बड़ी होशियारी मुसलमानों का के साथ अपने क्रोध को रोका और अपने मन्त्रियों से सलाह करके उसी दिन शाम को • Sir John Kaye, Lives of Indran officers, vol 1, P 396. .. 096.
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