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भारत में अंगरेज़ी राज

मद भारत में अंगरेजी राज मेटकाफ की मुख्य बात पर अपने सरदारों के साथ सलाह करके रणजीतसिंह एक बार अंगरेजों से लड़ने लार्ड मिण्टो की के लिए तैयार होगया । अंगरेजों ने अब उसे उडेश पूर्ति - यह लोभ दिया कि आप अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करके उत्तर और पच्छिम की ओर अपना साम्राज्य बढ़ाइए और अंगरेजों की मित्रता के बदले में सतलज पार का प्रदेश अंगरेजों के लिए छोड़ दोजिये । इसके अतिरिक्त रणजीतसिंह को डराने के लिए जनवरी सन् १८०६ में कुछ सेना दिल्ली से करनल प्रॉक्टरलोनी के अधीन लुधियाने रवाने करदी गई। पञ्जाब के कई सरदार इस समय रणजीतसिंह के विरुद्ध अंगरेजों के पक्ष में दिखाई दिए। अन्त में रणजीतसिंह ने अपनी सेनाएँ पीछे हटा लीं। २५ अप्रैल सन् १८०६ को रणजीतसिंह और अंगरेजों के बीच सन्धि हो गई। हाल में सतलज के इस पार जो इलाका रणजीतसिंह ने अपने अधीन कर लिया था वह उससे ले लिया गया। सतलज और जमना के बीच के थोड़े से इलाके को छोड़ कर जो पहले से रणजीतसिंह के अधीन था, वहाँ का बाकी सारा प्रदेश कम्पनी के अधीन मान लिया गया; और वहाँ के समस्त देशी नरेश और उनकी प्रजा कम्पनी के हाथों में सौंप दी गई। महाराजा रणजीतसिह को अफगानिस्तान पर हमला करने के लिए आज़ाद छोड़ दिया गया। लॉर्ड मिण्टो का उद्देश पूरा हुआ। सिखों और अफ़ग़ानों के