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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेज़ी राज बगावतें जारी थीं । अफ़ग़ानों को इस बात का डर था कि अंगरेज़ कहीं उनसे फायदा उठाने की कोशिश न करें। एलफ़िन्सटन ने अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह को विश्वास दिलाया कि अंगरेज़ों का उद्देश केवल अफ़ग़ानिस्तान के साथ मित्रता कायम करना है, ताकि एक दूसरे को समय पड़ने पर सहायता दे सकें। इस पर शाहशुजा ने इजाजत दे दी, और ५ मार्च सन् १८०६ को पेशावर में शाहशुजा और अंगरेज़ राजदूत में भेंट हुई। शाहशुजा ने बड़े मत्कार के साथ एलफिन्सटन का स्वागत किया। एलफिन्सटन ने शाहशुजा को समझाया कि अफ़ग़ानिस्तान को कस, फ्रान्स और ईरान तीनों से खतरा है, साथ ही उसे अंगरेजों की मित्रता का भी विश्वास दिलाया । एलफिन्सटन ने शाहशुजा से प्रार्थना की कि श्राप फ्रान्सीसियों और ईरानियों को अपने राज में न घुसने दें और यदि ये लोग भारत पर हमला करना चाहे तो आप उन्हें रोकने में अंगरेज़ों को मदद दें। किन्तु शाहशुजा के विरुद्ध उस समय उसके देश के अन्दर श्राफ़त मची हुई थी। उसे एक जबरदस्त बग़ावत का मुकाबला करना पड़ रहा था । इतिहास लेखक जान के लिखता है कि-"जब किसी मनुष्य के घर में आग लगी हुई हो तब उसे अधिक दूर के डर दिखाने का समय नहीं होता।" शाहशुजा और उसके मन्त्रियों ने एलफिन्सटन के जवाब में उससे यह इच्छा प्रकट की कि अंगरेज़ पहले अफगानिस्तान की बग़ावतों को शान्त करने में शाहशुजा को मदद दें। एलफिन्सटन ने इससे इनकार किया । इतिहास लेखक के लिखता है कि-