८७२ भारत में अंगरेजी राज शाहशुजा और उसके मन्त्रियों को यह पता न था कि अंगरेज हमें हमारी घरेलू आपत्तियों में इसलिए मदद एलफिन्सटन की " नहीं दे रहे हैं, क्योंकि वास्तव में ये समस्त र डरेश पूर्ति - आपत्तियाँ अंगरेजों ही की पैदा की हुई हैं। करीब १० वर्ष पहले अफ़ग़ानिस्तान के अन्दर इन्हीं सब उपद्रवों को खड़ा करने के लिए मेहदीअली खाँ और उसके बाद मैलकम को ईरान भेजा गया था और इसी काम के लिए ईरान की सरकार को नकद रकम दी गई थी। शाह महमूद ने इस समय शाहशुजा के विरुद्ध बगावत खड़ी कर रक्खी थी। शाहशुजा और शाह महमूद दोनों को ज़मानशाह के विरुद्ध भड़का कर अंगरेज़ों ने होईरान से अफगानिस्तान भिजवाया था। साथ हो अभी हाल में महाराजा रणजीतसिंह को दोश्राव के बदले में अफ़ग़ानिस्तान पर चढ़ाई करने के लिए उकसाया जा चुका था। इन हालतों में एलफिन्सटन शाहशुजा से सिवाय मित्रता की ऊपरी बातें मिलाने के और क्या कर सकता था? शाहशुजा ने अब एलफिन्सटन पर ज़ोर देना शुरू किया कि श्राप शीघ्र अपने इलाके को लौट जाइए । फ्रान्सीसियों के हमले का भय इस बीच बिलकुल जाता रहा था, किन्तु रूस के हमले का हर बाकी था। इसलिए अंगरेजों और अफगानिस्तान के बीच सन्धि होना आवश्यक था। अन्त में धन के ज़ोर से अंगरेज़ों और शाहशुजा में सन्धि हो गई। शाहशुजा ने वादा किया कि मैं फ्रान्सीसियों या ईरानियों को अपने राज से होकर न निकलने
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