प्रथम लॉर्ड मिण्टो दूंगा और कम्पनी ने इसके बदले में अफ़ग़ानिस्तान को वार्षिक धन देते रहने का वादा किया। एलफ़िन्सटन और उसके साथी अफगानिस्तान के सैन्य बल इत्यादि का पूरा ज्ञान प्राप्त करके, अफगानिस्तान और भारत के मार्गों और मार्ग की कौमों को जानकारी प्राप्त करके पञ्जाब के रास्ते हिन्दोस्तान लौट पाए। एक फ्रान्सीसी लेखक लिखता है कि अंगरेज़ों ने रणजीतसिंह को अफगानिस्तान पर हमला करने के लिए इसलिए उकसाया क्योंकि वे जानते थे कि रणजीतसिंह की मृत्यु के बाद पञ्जाव और रणजीतसिंह का शेष समस्त राज कम्पनी के हाथों में श्रा जायगा। हिन्द-महासागर में उस समय तक कुछ छोटे छोटे टापू फ्रान्सीसियों के और कुछ डच लोगों के अधीन डच और थे। लॉर्ड मिण्टो ने सन् १८०६ में भारत से फ्रान्सीसी टापुओं सेना भेज कर फ्रान्सीसी टापुत्रों पर हमला पर कब्ज़ा किया। सन् १८१० में यह टापू अंगरेजों के हाथों में आ गए। इसी तरह सन् १८११ में डच टापुओं पर भी अंगरेजों का कब्जा हो गया । इन सब टापुओं की विजय का पूरा खर्च भारत से लिया गया। सन् १८१३ में लॉर्ड मिण्टो इङ्गलिस्तान के लिए रवाना हो गया। निस्सन्देह उस नाजुक समय में अंगरेज़ कौम की दृष्टि से लॉर्ड मिण्टो का शासन-काल एक बहुत सफल शासन-काल था।
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