पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८८२
भारत में अंगरेज़ी राज

८८२ भारत में अंगरेज़ी राज को गिराने के लिए यूरोप की विविध राजशक्तियों के साथ साजिशें करने में और यूरोप के शासकों को बड़ी बड़ी रिशवतें देने में इङ्गलिस्तान ने पानी की तरह धन बहाया। इङ्गलिस्तान के पास उस समय इतना धन कहाँ था ? धन कमाने का मुख्य उपाय अंगरेजों के हाथों में व्यापार था। नेपोलियन ने समस्त यूरोपियन महाद्वीप में इङ्गलिस्तान से माल का आना जाना बन्द कर दिया, जिससे इङ्गलिस्तान के व्यापार को बहुत बड़ी हानि पहुँची। नेपोलियन का मुकाबला करने के लिए इस हानि को पूरा करना आवश्यक था और हानि के पूरा करने के लिए भारत के सिवा अंगरेजों को दूसग देश उस समय नज़र न श्रा सकता था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी इङ्गलिस्तान की पार्लिमेण्ट के कानून द्वारा कायम हुई थी। कम्पनी के अधिकारों को सन् १८१३ का । जारी रखने के लिए पार्लिमेण्ट को हर बीस वर्ष - चारटर एक्ट के बाद नया कानून पास करना पड़ता था, जिसे 'चारटर एक्ट' कहते थे । सन् १८१३ के 'चारटर एक्ट' के समय से इङ्गलिस्तान का बना हुश्रा माल भारतवासियों के सिर मढ़ने और भारत के प्राचीन उद्योग धन्धों का नाश करने के विधिवत् प्रयत्न शुरू हुए । यहाँ तक कि सन् १८१३ के इस 'चारटर एक्ट' को ही वर्तमान भारत की भयङ्कर दरिद्रता और असहायता का मूल कारण कहा जा सकता है।