व्यापार सम्बन्धी अत्याचार भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश किन्तु इस नए कानून और उसके परिणामों को पूरी तरह समझने से पहले यह आवश्यक है कि हम भारत के अन्दर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के उस समय तक के व्यापार के वास्तविक रूप को जान लें। कम्पनी अपने व्यापार में जिस तरह के अन्याय और अत्याचार करती थी उसकी दो चार प्रामाणिक मिसाले नीचे दी जाती है- रिचर्ड्स नामक एक अंगरेज़ ने सूरत की अंगरेज़ी कोठी के रोज़नामचे से कुछ घटनाएँ उद्धृत की हैं, जो उसने सन् १८१३ में पुस्तकाकार प्रकाशित की, और जिनसे मालूम होता है कि सन् १७६६ और सन् १८११ के बीच सूरत में कम्पनी के व्यापार का ढङ्ग किम्न प्रकार का रहा। वह लिखता है- “जो कपड़ा सूरत से विलायत भेजा जाता था, वह अत्यन्त कड़े और निष्ठुर अत्याचारों द्वारा वसूल किया जाता था। जुलाहों को उनकी इच्छा और हित दोनों के विरुद्ध कम्पनी से काम का ठेका लेने और उस ठेके के अनुसार काम कर देने के लिए मजबूर किया जाता था। कभी कभी जुलाहे इस प्रकार जबरन् काम करने की अपेक्षा भारी जुर्माना दे देना अधिक पसन्द करते थे । कम्पनी अपने नमूने के अनुसार या बढ़िया माल के लिए जुलाहों को जो दाम देती थी उससे कहीं घटिया माल के लिए उच, पुर्तगाली, फ्रान्सीसी और अरब सौदागरों से उन जुलाहों की ज़्यादा दाम मिल सकते थे। x x x कम्पनी का व्यापारी रेज़िडेण्ट साफ़ कहता था कि कम्पनी का उद्देश यह है कि कम या निश्चित दामों पर थाना
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