पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४८

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टीपू सुल्तान

टीपू सुलतान घुसने से पहले इन शेरों को गोली से उड़ा देना पड़ा। महल के भीतर टीपू का खज़ाना धन और जवाहरात से लबालब था। यह माल, हाथी, ऊँट और तरह तरह का असबाब कम्पनी और उसके अंगरेज़ सिपाहियों के हाथों में आया। टीपू के सुन्दर तख्त को, जो सोने का बना हुआ था, तोड़ डाला गया और होरे, जवाहरात, मोतियों की मालाएँ और जेवरों के पिटारे नीलाम किए गए। यहाँ तक को केवल महल के जवाहरात की लूट का अन्दाज़ा उस समय १,११,४३,२१६ पाउण्ड यानी करीब १२ करोड़ रुपये का किया गया। टीपू का विशाल पुस्तकालय और अनेक अन्य बहुमूल्य पदार्थ श्रीरङ्गपट्टन से उठाकर विलायत भेज दिए गए। ४ मई सन् १७६8 को टीपू की मृत्यु हुई। उसी दिन अंगरेज़ी सेना ने श्रीरङ्गपट्टन में प्रवेश किया। ५ मई को टीपू के राज का दीप की लाश हैदरअली के मकबरे के पास लाल वाग में दफ़न कर दी गई। इसके बाद फतहहैदर सुलतान के साथ जनरल हैरिस के वादे को मिट्टी में मिलाकर अंगरेज़ों ने टीपू के भाई करीमसाहब, टीपू के १२ बेटों और उसकी बेगमों सबको कैद करके रायवेलोर के किले में भेज दिया। ___टोपू की सल्तनत के कई टुकड़े कर दिए गए । अधिकांश भाग कम्पनी को मिला । एक फांक निज़ाम के हिस्से में आई । बाकी हिस्से पर मैसूर के पुराने हिन्दू राजकुल का शासन रहने दिया गया, और उस कुल का एक पांच साल का बालक राजा बनाकर बैठा दिया गया, क्योंकि इस कुल के कुछ लोगों ने भी टीपू के अन्त