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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४९

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४७४
भारत में अंगरेज़ी राज

४७४ भारत में अंगरेजी राज विरुद्ध अंगरेज़ों को मदद दी थी। मैसूर के "देव" का पद भविष्य के लिए उड़ा दिया गया; और विश्वासघातक पूनिया बालक राज का वज़ीर और रक्षक नियुक्त हुश्रा । ___८ जुलाई सन् १७६४ को मैसूर के नए महाराजा और अंगरेज कम्पनी के बीच सोलह शतों का एक नया सन्धि मैसूर के नए बाखक पत्र लिखा गया । इन शतों का सार यह था वि महाराजा के साथ कम्पनी की सब्सीडीयरी सेना मैसूर में रह सन्धि करेगी, मैसूर के राजा को इस सेना के खर्च में लिए सात लाख पैगोदा यानी करीव पच्चीस लाख रुपए सालान देने होंगे, रियासत के तमाम किले और पूग फ़ौजी शासन अंगरेज़ी के हाथों में रहेगा, राज के हर महकमे में दखल देने का गवरनर जनरल को पूरा अधिकार रहेगा, गवग्न जनरल की श्राशा हर समय और हर हालत में राजा को माननी होगी, और राजा का एक मात्र अधिकार यह होगा कि रियामत की आमदनी में से फौजी और अन्य सब खर्च निकाल कर कम से कम एक लारू पैगोदा सालाना उसे अपने निजी खर्च के लिए मिलता रहे। ____टीपू के जिन सरदारों और अन्य नौकरों ने अपने मालिक के साथ विश्वासघात किया था उनमें से कुछ को इनाम में जागीरें और पेनशनें दी गई । इङ्गलिस्तान की सरकार ने उन सब अंगरेज़ों को इनाम दिए जिन्होंने इस युद्ध में भाग लिया था। गवरनर जनरल का नाम पहले 'अर्ल' मॉरनिङ्गटन था, अब रुतबा बढ़कर उसका नाम 'माकिस' वेल्सली हो गया। जमरन