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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४८२

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८८६
भारत में अंगरेज़ी राज

८८६ भारत में अंगरेजी राज का काम छोड़ सकता था, न किसी दूसरे के लिए काम कर सकता था, और न स्वयं अपने ही लिए काम कर सकता था। इस छोटे सं नियम ने देश भर में प्रत्येक जुलाहे को कठोर से कठोर अर्थों में कम्पनी का आजीवन लाम बना दिया । यदि कोई कारीगर अपना वादा पूरा न कर सकता था तो उसे हवालात में बन्द कर दिया जाता था और उसका सब माल कच्चा और तैयार कम्पनी के नाम ज़ब्त कर लिया जाता था। इस बात की भी बिलकुल परवा न की जाती थी कि वह किसी दूसरे का भी क़र्ज़दार है या नहीं। बङ्गाल के जिन जिलों में कम्पनी की रेशम की कोठियाँ थीं, उनमें कम से कम सन् १८२६ तक प्रजा के ऊपर रागर इससे भी अधिक अत्याचार होते रहे । सूरत के साथ अत्याचार की कोठी कासा पूरा ढंग वहाँ बर्ता जाता था। इसके अतिरिक्त सन् १८२७ में बङ्गाल भर में रेशम के दाम कुछ बढ़ गए । अंगरेज़ शासकों ने कम्पनी के रेशम खरीदने वाले गुमाश्तों को हुकुम दिया कि बिना रेशम के कारीगरों से पूछे या उनके हित का ख़याल किए, कीमत घटा कर नियत कर दी जाय ।* "As long as the Company continued to trade in piece goods af Surat this was the uniform practice of their commercial servants It may be taken as a specimen of the practice of other factories "-As quoted in The Ruin of Indian Trade and Industries, By Major B D Basu, pp 78,79 Mr Saunder'sevidence In March, 1831, before the Parliamentary Committee