पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८९०
भारत में अंगरेज़ी राज

८६० भारत में अंगरेज़ी राज कम्पनी ने इस तरह अपना अनन्य अधिकार जमा रक्खा है कि मानों वे सब कम्पनी के खरीदे हुए गुलाम हैं x x x ग़रीब जुलाहों को सताने के अनेक और असंख्य सरीके हैं और देश के अन्दर कम्पनी के एजण्ट और गुमाश्ते इन तरीकों का प्रतिदिन उपयोग करते रहते हैं। उदाहरण के लिए जुर्माने करना, कैद कर देना, कोड़े मारना, ज़बरदस्ती इकरार नामे लिखवा लेना इत्यादि । इन सबका परिणाम यह है कि देश के अन्दर कपड़ा बुनने वालों की संख्या बेहद कम होगई है। x x x इसलिए कपडा बुनने वाले अपनी मेहनत का उचित मूल्य लेने की इच्छा से प्रायः निजी तौर पर अपना कपड़ा दूसरों के हाथ बेचने की कोशिश करते हैं । x x x इस पर अंगरेज़ कम्पनी का गुमाश्ता जुलाहे पर निगाह रखने के लिए अपने सिपाही नियुक्त कर देता है और बहुधा ज्योंही कि थान पूरा होने के करीब पाता है, ये सिपाही थान को ज़बरदस्ती करघे में सं काट कर निकाल लेते हैं। x x x देश भर के अन्दर हर पेशे के कारीगरों के साथ हर तरह का अत्याचार प्रतिदिन बढ़ता जाता है; यहाँ तक कि बुनने वाले यदि अपना माल किसी को बेचने का साहस करते हैं और दलाल और पैकार यदि इस तरह की बिक्री में सहायता देते हैं या उससे आँख बचा जाते है तो कई बार ऐसा हो चुका है कि कम्पनी के एजण्ट उन्हें पकड़ कर कैद कर लेते हैं, उनके बेड़ियों और हथ- कड़ियों डाल देते हैं, उनसे बड़ी बड़ी रकमे जुर्माने की वसूल करते हैं, उनके काड़े लगाते हैं और अत्यन्त लज्जाजनक तरीकों से उनसे वह चीजें भी छीन लेते हैं जिसे वे सबसे अधिक मूल्यवान् समझते हैं, यानी उन्हें जाति भ्रष्ट कर देते हैं । x x x गुमाश्तों द्वारा इस तरह के अत्याचार सिराजुद्दौला के समय से अंगरेज़ कम्पनी की सत्ता बढ़ने के साथ साथ शुरू हुए xxx