मह२ भारत में अंगरेजी राज विद्वान लेखक ने सम्भवतः लज्जा या शालीनता के विचार से यह साफ नहीं लिखा कि बंगाल के कपड़ा बुनने वालों को किस प्रकार "जातिभ्रष्ट" किया जाता था या "मानव समाज के" किन "पवित्रतम नियमों" का और किस प्रकार "घोर उल्लङ्घन" किया जाता था! एक दूसरे स्थान पर यही लेखक लिखता है :- "यदि हिन्दोस्तानी जुलाहे उतना काम पूरा नहीं कर सकते जितना कम्पनी के गुमाश्ते ज़बरदस्ती उन पर मढ़ देते हैं, तो जुलाहों का अपने ___ कमी को पूरा कराने के लिए उनका माल असबाब लंकर अंगूठ काटना उसी जगह नीलाम कर दिया जाता है; और क्च रेशम के लपेटने वालों के साथ इतना अधिक अन्याय किया गया है कि इस तरह की मिसालें देखी गई हैं जिनमें उन्होंने स्वयं अपने अंगूठे काट डाले, ताकि कोई उन्हें रेशम लपेटन के लिए विवश न कर सके।"* रेशम लपेटने का काम बिना अँगूठे के नहीं हो सकता। एक और स्थान पर यही लेखक लिखता है कि रय्यत को एक "-Considerations on Indian of society were atrociously violated Affiars, by Bolts, pp 72, 74, 192-195 __upon their inability to perform such agreements as have ben forced upon them by the Company's agents, . have had ther goods seized and sold on the spot to make good the deficiency, and the winders of raw silk, have been treated also with such injustice, that Instances have been known of their cutting off ther thumbs to prevent ther being forced to wind silk "-Ibid
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४८८
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