पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८९३
भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश

वकर भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश ८६३ ओर कम्पनी के व्यापारी गुमाश्ते माल के लिए - इस तरह दिक़ करते थे जिससे वे अपनी भूमि लगान अदा करना " को ठीक रखने और सरकारी लगान तक देने के असमर्थ हो जाते थे, दूसरी ओर लगान वसूल करने वाले अफसर उन्हें लगान के लिए सताते थे, "और अनेक ही बार ऐसा हुआ है कि इन निर्दय लुटेरों ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वे लगान अदा करने के लिए या तो अपने बच्चों को बेच डाले या देश छोड़ कर भाग जायँ।" १८ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और १६ वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के कम्पनी के इन अत्याचारों के विषय में ही सुप्रसिद्ध अंगरेज़ तत्ववेत्ता हरबर्ट स्पेन्सर ने हरबर्ट स्पेन्सर "कल्पना कीजिए कि उन लोगों के कारनामे कितने काले रहे होंगे जब कि कम्पनी के डाइरेक्टरों तक ने इस बात को स्वीकार किया कि-"भारत के आन्तरिक व्यापार में जो अटूट धन कमाया गया है, वह सब इस सरह के घोर अन्यायों और अत्याचारों द्वारा प्राप्त किया गया है जिनसे बढ़ कर अन्याय और अत्याचार कभी किसी देश या किसी ज़माने में भी सुनने में न. पाए होंगे।" प्रत्या • “ And not infrequently have by those harpies been necessitated to sell their children in order to pay their rents or otherwise obliged to fly the country"-Jbrd + "Imagine how black must have been their deeds, when even the Directors of the Company admitted that the vast fortunes acquired in the