पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४९३

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भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश

भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश ८६७ अंगरेज गवाह इन दोनों कमेटियों के सामने पेश हुए उन्होंने एक मत से यह बयान किया कि हिन्दोस्तानियों को इङ्गलिस्तान के बने हुए किसी माल की बिलकुल आवश्यकता नहीं है और न इङ्गलिस्तान का माल यहाँ श्रासानो से खपाया जा सकता है। इन असंख्य गवाहियों को यहाँ उद्धृत करना अनावश्यक है । जो जो मुख्य उपाय अपनी नीति को सफल करने के लिए उस समय के अंगरेज़ शासकों ने तय किए उन्हें संक्षेप में इस प्रकार गिनाया जा सकता है,- (१) इङ्गलिस्तान के बने हुए माल को नाम मात्र महसूल पर या बिना महसूल भारत में आने दिया जाय । (२) इङ्गलिस्तान में भारत के बने हुए माल पर इतना जबरदस्त महसूल लगाया जाय कि जिससे भारत का माल वहाँ इङ्गलिस्तान के बने हुए माल के मुकाबले में सस्ता न बिक सके। (३) भारत के अन्दर चुङ्गो के क़ायदों और चुङ्गी की दर में इस तरह के परिवर्तन किए जायें जिनसे रुई इत्यादि कच्चे माल के इङ्गलिस्तान भेजने में आसानी हो, जिनसं भारतीय कारीगरों की लागत और भारतीय व्यापारियों की कठिनाइयाँ बढ़ जायें और भारत का बाजार भी भारत के माल के लिए बन्द हो जाय और अंगरेज़ी माल के लिए खाली हो जाय । (४) अंगरेज़ व्यापारियों और कारीगरों को भारत में रहने और काम करने के लिए धन की सहायता और अन्य विशेष सुविधाएँ दी जायें।