८६६ भारत में अंगरेजी राज निस्सन्देह मिस्टर टोरने की स्पष्टवादिता सराहनीय है। केवल एक वाक्य ऊपर के उद्धरण में असत्य था। वह यह कि “हम मशीनों के जरिए हिन्दोस्तानियों की निस्बत सस्ता कपड़ा बुन सकते हैं।" आगे की घटनाओं से साफ जाहिर हो गया कि 'मशीनों' और 'भाप' की मदद से भी इङ्गलिस्तान के कारीगर भारत के कारीगरों के मुकाबले में सस्ता या अच्छा कपड़ा न बुन सकते थे, और यदि अनसुने महसूलों, अन्यायों, बहिष्कारों और असंख्य राजनैतिक हथकण्डों द्वाग भारत के उद्योग धन्धों को नष्ट न किया गया होता तो भाप की ताकत के लिए इङ्गलिस्तान के कपड़े के कारखानों को चला सकना सर्वथा असम्भव था। अब देखना यह है कि किन किन उपायों द्वारा अंगरेजों ने उस समय अपनी इस नीति को सफल बनाया। सन् १८१३ का कानून पास होने से पहले पार्लिमेण्ट की दो ___ खास कमेटियाँ इस बात के लिए नियुक्त की गई भारतीय उद्योग कि वे हिन्दोस्तान से गए हुए सब बड़े बड़े धन्धों के नाश अंगरेजों की गवाहियाँ जमा करके इस नीति के उपाय को सफल बनाने के उपाय निकाले । जितने with the raw material, and we will weave for you ' This might be a very natural principle for merchants and manufacturers to go upon, but it was rather too much to talk of the philosophy of it, or to rank the supporters of it as in a peculiar degree the friends of India. If instead of calling them. selves the friends of India, they had professed themselves its enemies, what more could they do than advise the destruction of all Indian manufacutres?" --Mr Tierney in the House of Commons, 1813
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