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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५०१

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भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश

भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश १०५ इङ्गलिस्तान और यूरोप की मण्डियाँ हिन्दोस्तान के बने हुए माल के लिए निषेधकारी महसूलों द्वारा बन्द कर दी गई। इस लिस्तान के बने हुए माल की बिक्री के लिए भारत में विशेष सुविधाएँ कर दी गई। किन्तु असंख्य भारतीय कारीगरियों के सर्वनाश के लिए यह भी काफी न था। भारतवर्ष की विशाल मण्डियाँ अभी तक भारत के बने हुए माल की खपत के लिए मौजूद थीं। भारत की इन मण्डियों में इङ्गलिस्तान के बन माल के लिए जगह बनाने के वास्ते उनमें भारत ही के बने हुए माल का पहुँच सकना और बिक सकना असम्भव कर देना आवश्यक था। इसके लिए मुख्य उपाय यह किया गया कि भारतवर्ष के अन्दर चुङ्गी के पुराने सरीको को बदला गया और चुङ्गी का एक नया नाशकारी महकमा कायम किया गया। फ्रेड्रिक शोर नामक उस समय के एक अंगरेज़ विद्वान ने चुङ्गी के पुराने हिन्दोस्तानी तरीके और नई चुङ्गी

  • इसके बाद के अंगरेज़ी तरीके को तुलना करते

हुए लिखा है कि चुङ्गी वसूल करने का पुराना हिन्दोस्तानी तरोका यानी मुग़लों या नवाबों के समय का तरीका यह था कि हर चालीस, पचास या साठ मील के ऊपर चुङ्गीघर बने हुए थे। हर चुङ्गीघर को पार करते समय व्यापारी को अपने माल पर चुङ्गी देनी पड़ती थी जो एक लदे हुए बैल पर एक खास and ultimately strangle a competitor with whom he could not have con- tended on equal terms "-Mill's History of British India, vol vu,P 385