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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५०२

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भारत में अंगरेज़ी राज

६०६ भारत में अंगरेजी राज रकम, टङ्क पर उससं कुछ ज़्यादा, ऊँट पर और कुछ ज़्यादा, बैलगाड़ी पर उससे कुछ अधिक इत्यादि, इसी हिसाब से नियत थी। माल की कीमत या किस्म से चुङ्गी का कोई सम्बन्ध न था। इसके अतिरिक चुङ्गी इतनी हलकी होती थी कि कोई उसमे बचने की कोशिश न करता था। न किसी को माल खोल कर देखने की आवश्यकता होती थी, न किसी 'पास' या ग्वन्ने की ज़रूरत; और न किसी व्यापारी को कोई कष्ट होता था। जो व्यापारी अपना माल अधिक दूर ले जाता था उसे हर ५० या ६० मील के बाद वही बँधी हुई रकम देनी होती थी। इसकी जगह जो नया तरीका अंगरेजों ने जारी किया,वह यह था- चुङ्गीधर्गे के अलावा देश भर में अनेक 'चौकियां' बना दी गई, . जिन में हर व्यापारी के सब माल को खोल कर देखा जाता था। चुङ्गीघर में व्यापारी से एक चौकियाँ बार चुङ्गी ले ली जाती थी और उसे एक 'पास' या रवन्ना' दे दिया जाता था ताकि उस व्यापारी को दोबारा कहीं चुङ्गी न देनी पड़े। माल की कीमत और किम्म के अनुसार हर तरह के माल पर अलग अलग चुङ्गी रक्खी गई । चाहे व्यापारी को बहुत दूर जाना हो और चाहे बहुत नज़दीक, किन्तु चुङ्गी की रकम वह नियत की गई, जो इससे पहले दूर से दूर जाने वाले व्यापारी को रास्ते भर के सब चुङ्गोघरों पर मिला कर देनी पड़ती थी। इस प्रकार पहली बात तो यह हुई कि देश के श्रान्तरिक व्यापार पर चुङ्गी पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ गई।