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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५०५

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भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश

भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश 08 और असंख्य देशी दस्तकारियों का और देश के श्रान्तरिक व्यापार का सत्यानाश हो गया। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इंगलिस्तान का बना हुआ माल, जो अंगरेज़ ओर उनके एजण्ट यहाँ बेचते थे, इन समस्त असुविधाओं से बरी था। फ्रेड्रिक शोर लिखता है- "हम इस बात की बड़ी बड़ी शिकायतें सुनते हैं कि इस देश के लोग ग़रीब होते जा रहे हैं, देश का प्रान्तरिक व्यापार नष्ट होता जा रहा है और देश की दस्तकारियों बजाय उन्नति करने के, गिरती जा रही हैं। इसमें आश्चर्य ही क्या है ? हमारी इस चुङ्गी की प्रणाली के कारण समस्त व्यापारियों को जिन असल क्लेशों का सामना करना पड़ता है, क्या उनसे किसी और नतीजे को प्राशा की जा सकती थी ?" फ्रेंड्रिक शोर ने मिसालें दी हैं कि किस प्रकार देहली और बनारस के दुशालों के व्यापारियों का काम इस पद्धति द्वारा नष्ट हो गया है। बुखारा, रूस, पेशावर और काबुल के व्यापारियों को इससे कितना नुकसान पहुंचा और वे किस प्रकार शिकायतें करते थे। भारत को दस्तकारियों पर तो कई कई बार चुकी देनी पड़ती थी; कच्चे माल पर अलग और बने हुए माल पर अलग। . “We hear loud complaints of the impovernshment of the people, the falling off of the internal trade, and the decline instead of the increase of manufactures Is it to be wondered at.Could any other result be anticipa- ted from the intolerable vexation to which all merchants are exposed by our Internal customs."-Notes on Indian Affairs, By Hon Frederick Shore