पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५०४

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भारत में अंगरेज़ी राज

•801 भारत में अंगरेजी राज था कि जहाँ से आगे के चुङ्गोघर तक पहुँचने से पहले उसे किसी तलाशी की चौकी पर से जाना पड़े तो उससे यह श्राशा की जाती थी कि वह अपने घर से माल लेकर निकलने से पहले ही किसी चुङ्गोघर से अपने माल के लिए रवन्ना हासिल कर ले । इस विचित्र और असम्भव नियम का नतीजा यह था कि जो मामूली व्यापारी अपने घर से कुछ दूर खास मेलों या बाजारों से माल खरीद कर दूसरे स्थानों पर जाकर बेचते थे उन्हें प्रायः अपने घर के पास के चुङ्गोघर वालों को पहले से यह बता देना होता था कि हम क्या, कितना और किस क़ीमत का माल खरीदेंगे और पहले ही से उसके लिए रवन्ना ले लेना होता था। जिस व्यापारी को यह पता न हो सकता था कि मुझे कौन सा माल और किस पड़ते पर मिल सकंगा, उसके व्यापार और रोज़गार के लिए यह नियम सर्वथा 'घातक था। एक तो वुङ्गो बेहद बढ़ा दी गई थी, दूसरे इन चौकियों पर प्रायः इतना समय नष्ट होता था, माल के मीलान बहिसाब चुङ्गो करवाने में इतनी कठिनाई होती थी, चौकी के छोटे मुलाजिमों के लिए माल को पहचान सकना, उसकी कीमत का अन्दाज़ा लगा सकना या व्यापारी के लिए यह साबित कर सकना कि माल ठीक वही है जो रवन्ने में दर्ज है-इतना कठिन होता था और चौकियों और चुङ्गोघरों के मुलाजिमों के अधिकार इतने विस्तृत होते थे कि इस नई पद्धति के कारण देश के व्यापारियों और कारीगरों की कठिनाइयाँ बेहद बढ़ गई, उनके हौसले टूट गए