सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४७५
टीपू सुल्तान

टीपू सुखताल ४७५ हेरिस आइन्दा के लिए जनरल 'लॉर्ड हैरिस अॉफ श्रीरंगपट्टन' हो गया। टीपू के सरदारों में से एक वीर मलिक जहान खाँ ने, जिसे चूंडिया बाघ भी कहा जाता है, अन्त तक भाजादी का सवा विदेशियों की अधीनता स्वीकार न को। केवल प्रेमी मलिक मान एक घोड़ा साथ लेकर श्रीरंगपट्टन के पतन के समय वह नगर से निकल गया और थोड़े ही दिनों में उसने करीब तीस हज़ार सवार और पैदल अपने साथ जमा कर लिए । दो साल तक कृष्णा और तुगभद्रा नदियों के बीच के इलाके में वह अंगरेजों और उनके साथियों को दिक करता रहा । अनेक लड़ाइयों में उसने विजय प्राप्त की, उसकी कीर्ति चारों ओर फैल गई। अभी इस अरसे में वह कोई बाजाब्ता किला या केन्द्र अपने लिए न बना सका। इतने में दो साल तक इस तरह मुकाबला करने के बाद एक जगह करनल पारथर वेल्सली की सेना के साथ उसका अन्तिम संग्राम हुआ जिसमें कड़प्पा और करनूल के अफ़ग़ानों ने उसके साथ विश्वासघात करके उसे करमल वेल्सली के हवाले कर दिया । अंगरेज़ इतिहास लेखक आजादी के इस सच्चे प्रेमी को जिसने लगातार दो साल तक अनन्त कष्ट सहन करते हुए भी विदेशियों की अधीनता स्वीकार मकी, प्रायः उसी तरह डाकू बतलाते हैं जिस तरह छत्रपति शिवाजी को। इस तरह वीर हैदरअली की मसल में राजसत्ता का अन्त कर