भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश ११७ हाथों से छीना जा चुका था। सर चार्ल्स ने अत्यन्त मर्मस्पर्शी शब्दों में कहा कि - "१,८०,००,००० रुपए सालाना को इस विशाल रकम को पैदा करने में जितने लोग लगे हुए थे उनकी अब क्या हालत होगी ?" गाँठों के हिसाब से सन् १८१४ में ३,८४२ गाँठे कपड़े की हिन्दोस्तान से इङ्गलिस्तान भेजी गई । सन् १८२४ में १,८७ और सन् १८२८ में केवल ४३३ गाँठे। यदि थानों की संख्या को देखा जाय तो सन् १८२४ में १,६७, ५२४ थान कपड़े के हिन्दोस्तान से इङ्गलिस्तान गए और सन् १८२६ में केवल १३,०४३ थान । इङ्गलिस्तान के बने हुए कुल सती माल का दाम जो सन् १८१४ में भारतवर्ष आया १६,१५,३१५ रुपया था, सन् १८२८ में यह रकम बढ़कर ३,०१,४६,६१५ रुपए तक पहुँच गई; अर्थात् १४ वर्ष के अन्दर हिन्दोस्तान में श्राने वाले इङ्गलिस्तान के सूती माल की कीमत लगभग १६ गुनी बढ़ गई। ऊनी कपड़ा सन् १८१४ में इङ्गलिस्तान से हिन्दोस्तान केवल ६,७०,६८० रुपए का प्राया। उसी वर्ष कुल माल कपड़े, लोहा, ताँबा, शराब, काग़ज़, कांच इत्यादि मिलाकर इङ्गलिस्तान से हिन्दोस्तान ६,१४,८७,४७५ रुपए का श्राया । सन् १८३० में कुल माल इङ्गलिस्तान से हिन्दोस्तान ३०,११,००,३१० रुपए का आया, जिसमें से २,१३, ८८, ७७० • "What is to become of all the people who were employed in working up this great annual amount (1,80,00,000 Rs.)"-Sr Charles Trevelyan, 1834
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