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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५१४

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भारत में अंगरेज़ी राज

६१८ भारत में अंगरेजी राज रुपए का ऊनी माल और १३, १०, ४३, २४० रुपए का सूती माल था ।* सन् १८३०-३२ की पार्लिमेण्टरी कमेटी के सामने जो गवाह पेश हुए उन्होंने एक स्वर से बयान किया कि हिन्दोस्तान में लङ्का शायर के बने हुए कपड़ों की खपत में १५ वर्ष के अन्दर अपूर्व और आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। ___ कपड़े का धन्धा किसी भी देश के उद्योग धन्धों में सदा सब से अधिक महत्वपूर्ण होता है । इसलिए हमने इसे इस अभ्याय में इतना अधिक विस्तार दिया है। किन्तु जिस प्रकार कम्पनी ने इस भारतीय धन्धे को नष्ट किया ठीक उसी प्रकार उस समय के अन्य अनेक उद्योग धन्धों के भी नाश का पता चलता है । भारतीय जहाजों के उद्योग को और विशेष कर माल लाने ले जाने वाले जहाजों की कारीगरी को किस प्रकार भारतीय जहाजों " नष्ट किया गया इस पर रोशनी डालते हुए के उद्योग का - डब्लू एस० लिंडसे लिखता है- नाश __"सन् १७८६ मे पुर्तगालियों के पास कैन्टन शहर में वाली तीन जहाज़ थे जब कि वे समस्त पूर्वीय व्यापार में पूरी सरह लगे हुए थे। डच लोगों के पास पाँच, फ्रान्सीसियों के पास एक, डेन मार्क वालों के पास एक, संयुक्त राष्ट्र अमरीका के पास पन्द्रह और अंगरेज़ ईष्ट इण्डिया कम्पनी के पास चालीस जहाज थे, जब कि केवल अंगरेज़ी इलाके की भारतीय --


- • Taken from Parliamentary Papers 1830-32, as quoted in Major B. D Basu's Runof Indian Trade and Industries, pp 70, 71, One pound being taken equal to Rs. 15