६२२ भारत में अंगरेजी राज नाश के लिए जो भी काग़ज़ खरीदे वह सब इंगलिस्तान का बना होना चाहिए और इस हुक्मनामे ने भारत के बढ़ते हुए काग़ज़ के न्यापार को बहुत जबरदस्त नुकसान पहुँचाया।". . यह सर चार्ल्स वुड भारत के पिछलं गवरनर जनरल लार्ड इरविन का पितामह था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के समय भारत में चीनी का उद्योग अपने शिखर पर था। हज़ारों मन भारतीय चीनी भारतीय चीनी के इङ्गलिस्तान और यूरोप के अन्य बन्दरगाहों धन्धे का में उतरती थी। जब खुले व्यापार में अंगरेज़ सौदागर भारतीय चीनी के व्यापार को न दबा सके तब महसूल के घातक उपायों को इस्तेमाल किया गया। सर जार्ज वाट लिखता :- "इंगलिस्तान की सरकार ने भारतीय चीनी पर इतना महसूल लगाया कि उसका भाना ही बन्द हो गया । वह अन्य उपनिवेशों की चीनी के महसूल से एक कार्टरवेट पीछे ८ शिलिंग ज़्यादा था ।" आगे चल कर वाट लिखता है :- "इसमें कोई सन्देह नहीं कि इस तरह भारतीय चीनी के उद्योग को एक भारी धक्का पहुंचाया गया और यदि भारत में कमी पूरा करने के जबरदस्त साधन न होते तो यह चोट संघातक साबित होती । यदि इङ्गलिस्तान भारत से कधी चीनी खरीदता रहता तो इसमें कोई सन्देह नहीं कि उत्पत्ति का क्षेत्र और माल की पैदावार का बढ़ना एक साज़िमी नतीजा . "The Commercial Products of India" by Sir George Watt, p866
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