६४२ भारत में अंगरेजी राज देहरादून के जङ्गलों में रोचपाना नदी के किनारे अभी तक एक छोटा सा स्मारक बना हुआ है जिस पर खुदा हुआ है- "हमारे वीर शत्रु बलभद्रसिंह और उसके वीर गोरखों की स्मृति में सम्मानोपहार x x x" बलभद्रसिंह कलङ्गा से निकल कर अपने सिपाहियों सहित एक दूसरे नेपाली दुर्ग जीतगढ़ की रक्षा के लिए पहुँच गया। जीतगढ़ में मेजर बेलडॉक ने एक हज़ार सेना सहित दुर्ग पर हमला किया। बलभद्रसिंह के पास पांच सौ से कम सैनिक थे। फिर भी विलियम्स लिखता है अंगरेजी सेना को ज़िल्लत के साथ हार खाकर पीछे हट जाना पड़ा। बलभद्रसिंह जौतगढ़ की रक्षा का काम केवल साठ आदमियों को सौंप कर अपने शेष आदमियों सहित जयटक के दुर्ग की रक्षा के लिए पहुँचा। कम्पनी के अफ़सर समझ गए कि केवल सना और तोपों के बल बिना अपने सुपरिचित "गुप्त उपायों" के साजिश गोरखों को जीत सकना असम्भव है। कलङ्गा के दुर्ग पर कब्जा करने के बाद करनल मॉबी ने अपने एक मातहत करनल कारपेण्टर को जमना नदी के दाहिनी ओर नेपाल के इलाके worthy of the best days of chavalry, conducted with a herorsm almost sufficient to palliate the disgrace of our own reverses "-G RC Williams' Memoir of Dehra Dun. " . . As a tnbute of respect for our gallant adversary Balabhadra Singh . . And his brave Gorkhas . "
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