पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५३७

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नैपाल युद्ध

नेपाल युद्ध अद्भुत वीरता कर सकना असम्भव था, किन्तु अब मैं अपनी इच्छा से दुर्ग छोड़ता हूँ।"* इसके बाद शत्रु के देखते देखते एक क्षण भर के अन्दर बलभद्रसिंह और उसके साथी पास की पहाड़ियों में गुम हो गए। जिस समय अंगरेज़ दुर्ग के भीतर पहुँचे वहाँ सिवाय . मरदों, औरतों और बच्चों की लाशों के और कुछ न था। कप्तान वन्सीटॉर्ट लिखता है कि इस दुर्ग के मुट्ठी भर संरक्षकों ने अंगरेजों की पूरी एक डिवीज़न सेना को एक महीने से ऊपर तक रोके रक्खा।। जनरल जिलेस्पी को मिलाकर अंगरेजों के ३१ अफ़सर और ७१८ सिपाहो इस संग्राम में काम पाए । अंगरेज़ों ने कलङ्गा के दुर्ग पर कब्ज़ा करते ही उसे ज़मीन से मिलाकर बराबर कर दिया। इस समय उस स्थान पर साल वृक्षों का एक घना जङ्गल है। भार० सी० विलियम्स इस घटना के सम्बन्ध में लिखता है- ___कलना के दुर्ग की रक्षा का इस प्रकार अन्त हुआ । यह रक्षा का कार्य वीर से वीर जाति के इतिहास को अलङ्कत करने वाला था और इस वीरता के साथ उसका सम्पादन किया गया जो प्रायः हमारी अपनी पराजयों को ज़िल्लत को धोने के लिए काफी थी।" • " . . . On abandoning his strong-hold, the Gorkha Leonidas triumphantly exclaimed in a loud voice , 'to capture the fort was a thing forbidden, but now I leave it of my own accord '"-Memotr of Dehra Dun, byG RC williams. + Notes on Nepal, by Captain Vansattart "Such was the conclusion of the defence of Kulunga, a feat of arms