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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५४१

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नैपाल युद्ध

नेपाल युद्ध ६४५ सैन्यदलों के कई अंगरेज़ सेनापति इतने अयोग्य और कायर साबित हुए कि गवरनर जनरल को उन्हें बरखास्त कर देना पड़ा। अभी तक जितने युद्ध अंगरेजों ने भारत में लड़े थे, उनमें शायद सबसे अधिक प्रचण्ड और रक्तमय यह नैपाल युद्ध ही था। इस युद्ध में पद पद पर नेपालियों ने अपने शत्रुओं से कहीं बढ़ कर वीरता और युद्ध कौशल का परिचय दिया। हमें इस युद्ध के समस्त संग्रामों को विस्तार से बयान करने की आवश्यकता नहीं है । इतिहास लेखक प्रिन्सेप पूर्वोक्त दोनों सेनाओं की पराजयों के विषय में लिखता है :- ___“अवध की सरहद से लेकर रङ्गपुर तक गोरखों ने हमारी सेनाओं को बन के उस पार जाने से पूरी तरह रोके रक्खा; जब कि वे बेधड़क हमारे इलाके में घुस पाते थे और हम कुछ न कर पाते थे, और देश भर में हमारे विरुद्ध खूब बढ़ बढ़ कर अफवाहें उड़ी हुई थीं।"* चौथी सेना प्रॉक्टरलोनी के अधीन लुधियाने में थी। पाँचों र मुख्य सेनापतियों में केवल एक श्रॉफ्टरलोनी अमरसिंह और भार ही ऐसा था जिसने किसी न किसी अंश में प्रॉक्टरलोनी सफलता प्राप्त की । प्रॉक्टरलोनी पाश्चात्य कूटनीति में प्रवीण था, और इस कूटनीति से ही उसने थोड़ी बहुत सफलता प्राप्त की। • " From the frontier of Oudh to Rangpur, our armies were completely held in check on the outside of the torest , while our territory was insulted with impunity and the most extravagant alarms spread through the country" -Prinsep's History of the Political and Military Transactions in India, etc