६४६ भारत में अंगरेजी राज ऑक्टरलोनी नेपाल की सबसे अधिक पश्चिमी सरहद पर था। सतलज के पास से उसने नेपाली इलाके में प्रवेश किया। सतलज के बाएँ किनारे से तीन अलग अलग पंक्तियाँ पहाड़ियों की शुरू होती हैं। इन तीनों पर गोरखों ने नालागढ़, रामगढ़ और मालम नाम के तीन किले बना रक्खे थे। इन किलों के बीच में और उनके पार कई छोटी छोटी रियासतें थीं जो सब नेपाल के अधीन थीं। जनरल ऑफ्टरलोनी ने पहले इन रियासतों को अपनी ओर फोड़ना शुरू किया। ३१ अक्तूबर सन् १८१४ को प्रॉक्टरलोनी अपनी सेना लेकर इन पहाड़ियों पर चढ़ा। २ नवम्बर को उसने नालागढ़ के दुर्ग के सामने तोपें लगा दी। नालागढ़ और उसके पास तारागढ़ के दुर्गों में मुशकिल से ५०० गोरखा सिपाही थे। प्रॉक्टरलोनी की सेना करीब ६ हज़ार थी। चार दिन के प्रयत्न के बाद ६ नवम्बर को ये दोनों दुर्ग प्रॉक्टरलोनी के हाथों में प्रागए । इसके बाद १३ नवम्बर को अॉक्टरलोनी रामगढ़ की ओर बढ़ा। रामगढ़ में बलभद्रसिंह का चचा सुप्रसिद्ध सेनापति अमरसिंह कुछ कम तीन हज़ार सेना सहित ऑक्टरलोनी के मुकाबले के लिए मौजूद था। श्रॉक्टरलोनी के पास उस समय कम से कम सात हजार सेना थी। फिर भी अमरसिंह ने अपने तीन हजार सैनिकों से अंगरेजों के सात हज़ार सैनिको को न केवल दुर्ग से बाहर ही रोक रक्खा, वरन् कई बार स्वयं दुर्ग से निकल कर उन्हें ज़बरदस्त शिकस्त दी और दूर तक खदेड़ दिया। इतिहास लेखक प्रिन्सेप लिखता है कि इन विजयों के
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