पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५४३

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नैपाल युद्ध

नैपाल युद्ध ६४७ समय भी गोरखों ने पराजित शत्रु के साथ इस उदारता का व्यव- हार किया जो एशियाई कौमों का एक विशेष गुण है। उन्होंने अंगरेज़ों को अपने मुरदे मैदान में ले जाने और उन्हें दफ़न करने इत्यादि की पूरी इजाज़त दे दी । प्रिन्सेप और अन्य यूरोपियन लेखकों के अनुसार गोरखे इस समस्त युद्ध में शत्रु की ओर इससे भी बढ़ कर वीरोचित उदारता का परिचय देते रहे। गवरनर जनरल के नाम अॉक्टरलोनी के एक पत्र से मालूम होता है कि इस समय प्रॉक्टरलोनी को अपनी सफलता में भारी सन्देह हो गया। फिर भी वह नेपाल दरबार के विरुद्ध श्रास पास के पहाड़ी राजाओं के साथ साज़िशों में लगा रहा । इन राजाओं में सबसे पहले उसने हिन्दुर ( नालागढ़) के राजा रामसरन को अपनी ओर मिलाया। कनिकम ने अपने सिखों के इतिहास में लिखा है कि राजा रामसरन की सहायता उस समय अंगरेजों के लिए सब से अधिक लाभदायक सिद्ध हुई । रामसरन ने श्रॉक्टर लोनी को श्रादमियों और रसद दोनों की मदद दी। राजा राम सरन ही ने अपने श्रादमियों से अंगरेज़ों की तोपों के जाने के लिए मकराम से नाहर तक सड़क बनवा दी। दूसरा पहाड़ी राजा, जिसे श्रॉक्टरलोनी ने अपनी ओर मिलाया अमरसिंह का एक सम्बन्धी बिलासपुर का राजा था। इसके अतिरिक्त गवरनर जनरल ने श्रॉक्टरलोनी का पत्र पाते ही और अधिक सेना उसकी सहायता के लिए भेज दी। इस प्रकार अॉक्टरलोनी के पास अब एक तो अमरसिंह से