पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५५

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टीपू सुल्तान

टीपू सुलतान ४७७ चरित्र पर इतने अधिक भूठे कलङ्क लगाए गए होंगे जिसने उन भारतीय वीरों के चरित्र पर, जिन्होंने समय समय पर इस देश के अन्दर अंगरेजी राज के जमने को रोकने का प्रयत्न किया। प्रसिद्ध और प्रामाणिक अंगरेज़ इतिहास लेखक सर जॉन के, जो सन् ५७ के स्वाधीनता युद्ध के बाद इंगलिस्तान के भारतमन्त्री के दफ्तर में 'राजनैतिक और गुप्त विभाग' का सेक्रेटरी रहा, साफ़ साफ लिखता है- "हम लोगों में यह एक प्रथा है कि पहले किसी देशी नरेश का राज छीनते हैं और फिर उस पर और उसका उत्तराधिकारी बनने वाले पर मूठे कनक लगा कर उन्हें बदनाम करते हैं।" दो तरह के इलज़ाम टीपू सुलतान पर लगाए जाते हैं। एक यह कि अपने अंगरेज़ कैदियों के साथ उसका दो मुख्य इलज़ाम " व्यवहार अत्यन्त क्रूर था और दूसरा यह कि टीपू एक धर्मान्ध मुसलमान था। ___ पहले इलज़ाम के विषय में हम केवल इतना कहेंगे कि सिवाय कप्तान बेयर्ड जैसे अंगरेज़ कैदियों के बयानों के और कोई गवाही इस 'क्रूर व्यवहार' की नहीं मिलती, और यह अंगरेज़ कैदी न निष्पक्ष माने जा सकते हैं और न सर्वथा सत्यवादी। इसके अलावा यदि बेयर्ड और उसके साथियों के सारे बयान सच भी मान लिए ." It is a custom among us odisse querm cestres-to takes Native Rulers Kingdom and then to resile the deposed ruler or his would- be successor '~History of the Sepoy War by Sur John Kaye, vol ul, pp 361,362