पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४७८
भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज जावे तो भी वे सब अत्याचार, जो टोपू ने बेयर्ड और उसके साथी अंगरेजों पर किए, उन अत्याचारों के मुकाबले में बिलकुल फोके मालूम होते हैं जो अंगरेजों ने इन्हीं मैसूर के युद्धों में अपने हिन्दोस्तानी कैदियों और मैसूर की प्रजा के साथ किए। दूसरा इलज़ाम इस देश में हिन्दू मुसलिम वैमनस्य को बढ़ाने . का अंगरेज़ लेखकों के हाथों में सदा से एक टीपू को धार्मिकता ' खास साधन रहा है। टीपू पर इस कल के विषय में हम सबसे पहले इतिहास लेखक जेम्स मिल की राय नकल करते हैं । जेम्स मिल लिखता है :- "टीपू के चरित्र की एक और विशेषता उसकी धामिकता थी। उसके मन पर इस धार्मिक भाव का अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ा हुआ था। दिन का अधिकांश समय वह ईश्वर प्रार्थना में खर्च किया करता था। अपनी सलतनत को वह 'नुदादाद' यानी 'ईश्वर प्रदत्त' कहा करता था । ईश्वर के अस्तित्व और उसकी पालकता में उसे इतना गहरा विश्वास था कि इस विश्वास का प्रभाव उसके जीवन के समस्त कार्यों पर पड़ता था । वास्तव में जिन चीजों ने उसे फंसाने के लिए जाल का काम दिया उनमें से एक उसका ईश्वर की सहायता पर विश्वास था, क्योंकि वह ईश्वरीय सहायता पर इतना अधिक भरोसा करता था कि कभी कभी अपनी रक्षा के दूसरे उपायों की अवहेलना कर बाता था।" • Another feature in the character of Tipu was his religion, with sense of which his mind was most deeply impressed He spent a consider- able part of every day in prayer He gave to his Kingdom, or state,a particular religious title, Khudadad' or God-given, and he ived under a